Story of Shakuntala by Kalidas in Hindi

राज नायक की लिखी कहानी शकुंतला यह बादलों की गड़गड़ाहट जैसी आवाज कहां से आ रही थी और जमीन से उठता दूर गए हो बाहर भरी दोपहर में गंध हल्का सा छा गया था तभी आवाज तेज हुई और मुझे एहसास हुआ कि यह बादलों का गर्जना नहीं घोड़ों की टॉप थी दोस्तों में आपको किसी युद्ध क्षेत्र में नहीं ले आया नहीं यह कहानी दो राजाओं की लड़ाई से जुड़ी है मैं तो आपको एक सुंदर प्रेम कहानी सुनाऊंगा जिसमें ना हथियार हैं न तकरार जीत का भी कोई डर नहीं है जंगल को भूल जाते हैं यह घोष सवार युद्ध के लिए नहीं बल्कि शिकार के लिए निकले हैं इनकी अगुवाई कर रहे हैं पूर्व वंश के प्रतापी राजा दुष्यंत महाभारत की कथा कुरुवंश शुरू होती है और यह कथा उससे भी पुरानी है लेकिन आज भी प्रासंगिक कहने वाले थे क्योंकि प्यार का रंग तो सदियों से गुलाबी ही रहा है और इश्क की महक हर युग में उतनी ही मीठी बात सुनकर जंगल में हड़कंप मच गया गुरु की ढाब सुनकर जंगल में हड़कंप मच गया जानवरों की जान बचाने को तोड़कर यहां आवाज में लगे राजा दुष्यंत एक सुंदर हिरण का पीछा करते-करते घने जंगल में घुसते चले गए अब वहां से उनके घोड़े के टॉप सुनाई दे रहे थे राजा ने पीछे मुड़कर देखा और मुस्कुरा दिए फिर वह अपने साथियों से बहुत आगे निकल आए थे ।

घने पेड़ों का और भी की मिट्टी की महक से उन्हें नशा सा होने लगा उन्होंने अपने तरकश में वापस डाल दिए न जाने क्या बात थी वहां की हवाओं में उनका शिकारी मांग अचानक किसी कोमल मन वाले नायक की तरह हो चला था शिराओं में वीर रस की जगह श्रंगार रस बहने लगा राजा दुष्यंत ने चारों ओर उन्हें याद आया कि इसी वन में ही तो कहीं महर्षि कानून का आश्रम था वह बताएं इंदौर आया हूं तो ऋषि के दर्शन भी करेंगे वरना राजपाट की योजनाओं में भक्ति कहां मिलता है राजा घोड़े की लगाम था में ऋषि का आश्रम कोसते हुए यहां-वहां भटकने लगे घने जंगल के बीच बापू की कुटिया दिखाई पड़ी राजा दुष्यंत ने कुटिया का दरवाजा खटखटाया और दरवाजे खुलते ही दुष्यंत के दिलो-दिमाग में छाया नशा और गहरा गया।

अच्छा और गहरा गया दरवाजे पर पूरे ऋषि कारण नहीं बल्कि अप्सराओं से भी सुंदर जंगली फूलों की महक वाली एक स्त्री खड़ी थी दुष्यंत अपने सामने खड़ी हो सुंदर औरत को एकटक देख रहे थे उन्हें लगा जैसे जंगल की हवाओं में कोई संगीत खुल गया है पत्तों की सरसराहट में उन्हें रागों के आरोप रोग सुनाई दे रहे थे न जाने कितनी देर यूं ही खड़े उनको निहारते रहते लेकिन मीठी आवाज ने उनका ध्यान भंग कर दिया आप कौन है राशन उसकी आवाज भी चेहरे की तरह मन मोह लेने वाली थी शब्द मिश्री बनकर कानों में घुल रहे थे रोशन का दिल चाहा कि वह स्त्री उनके सामने खड़े होकर सवाल करती रहे और जवाब देते रहें और ऐसे ही उम्र गुजर जाए ।

तभी उसने पूछा आप किसी की खोज में आए हैं क्या दुष्यंत मुस्कुराए बोले मैं राजा दुष्यंत हूं और यहां ऋषि कारण से मिलने आया था आप कौन हैं देवी राजा दुष्यंत की मुस्कुराहट और उनके प्रश्न का जवाब देते हुए वह स्त्री बोली आप इधर आइए पिताजी तो तीर्थ यात्रा पर गए हुए हैं मैं उनकी बेटी हूं शकुंतला तो आप समझ ही गए होंगे कि मेरी कहानी की नायिका की सूरत पर दुष्यंत क्यों रह गए थे यह वही शकुंतला थी जिनकी सुंदरता पर महाकवि कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम् जैसा महाकाव्य लिखा था।

सुशांत राजपूत की बनी उस कुटिया के भीतर पहुंचकर यहां वहां देखने लगे वह न कोई नरम मुलायम बिस्तर था ना कोई था ना कोई साधु सामान उन्होंने एक बार फिर शकुंतला की ओर देखा उन्हें हैरानी हुई कि ऐसी सुकोमल फूलों जैसी लड़की ने भी मोटे खुर्द और ऐसे वस्त्र पहन रखे थे शकुंतला राजा दुष्यंत के मन की बात समझ गई बोली राजन ये ऋषि की कुटिया है , और मैं ऋषि कन्या ऐसी सादगी से हम सारा जीवन गुजार देते हैं । गुजार देते हैं अगर आप बैठी हो मैं आपके लिए नरम बिछाना लेकर आती हूं दुष्यंत एंड शकुंतला को देख रहे थे उन्हें उसका चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे तालाब में होगा कोई और खिला कमल हो बहुत खूब बावरे जैसा महसूस कर रहे थे उनका मन किया कि वह शकुंतला के चारों ओर गुनगुन करते हुए मंडल आए उनको छूकर देखें उनको रिझा शकुंतला भी तो कनखियों से नहीं देख रही थी ऐसा सजीला नौजवान उन्होंने अपने पूरे जीवन में अब तक नहीं देखा था महान तपस्वी महर्षि करण की सूखी घास फूस की कुटिया में प्रेम अंकुरित हो रहा था ।

कुड़ी तो रहा था दुष्यंत अपने सामने रखे जंगली कंदमूल और फलों को खाते-खाते बिना पलकें झपकाए शकुंतला को देख रहे थे उनके मन में एक प्रश्न उठाया था कि महर्षि कारण तो सन्यासी थे अविवाहित तो उनकी पुत्री मगर संकोच के मारे वह पूछ नहीं पा रहे थे लेकिन शकुंतला बुद्धि मती थी दुष्यंत के मन की हलचल भाग रहे थे मुस्कुराते हुए बोली मैं वास्तव में विश्वामित्र और मेनका की पुत्री हूं मां मुझे बचपन में ही छोड़कर स्वर्ग लोक चली गई थी तभी पक्षी शगुन मेरी रक्षा की फिर महर्षि कालू ने मुझे आश्रय दिया और पाला पोसा दुष्यंत की मुस्कुरा उठे बोले क्षत्रिय पुत्री हैं आप तभी ऐसा तेज है चेहरे पर।

शकुंतला ने शर्माते हुए अपनी पलके झुका ली अपने लिए दुष्यंत के मन के भीतर मरते आकर्षण को महसूस कर रही थी और सच तो यह था कि वही ईद था कि वही खींचा वही जो काम उनके भीतर भी उमड़ रहा था यह शकुंतला की जिंदगी का सोलहवां साल था किसी सुंदर शक्तिशाली पुरुष को देख कर मन में है लोर का उठना स्वाभाविक था उम्र में एक बार कभी न कभी सबको प्यार होता है घने जंगल के बीच उसे कांत कुटिया में शकुंतला और दुष्यंत को भी एक दूसरे से वैसा ही अपेक्षा होगया था समुद्र में उठे ज्वार की तरह इस प्यार को दोनों कहां रोक पाए थे और उन्होंने ईश्वर को साक्षी मानकर गंधर्व विवाह कर लिया दिन और रत को जैसे पंख लग गए था। उन्होंने ईश्वर को साक्षी मानकर गंधर्व विवाह कर लिया दिन और रात को जैसे पंख लग गए थे वक्त गुजरता गया और दुष्यंत के वापस लौटने की गरीबी आ गई शकुंतला की तो मानो सांसे रुक गई दुश्मन हो गए एक दूसरे में मगन दोनों भूल ही गए थे कि प्रेम कहानियों में जुदाई का एक पन्ना होता है सच तो यह था दुष्यंत शकुंतला को छोड़कर जाना ही नहीं चाहते थे लेकिन राजपाट की जिम्मेदारी भी आखिर कब तक अनदेखी करते उन्होंने शकुंतल कि उनके पास चली आई के बल चलते शकुंतला की आंखों से आंसू बह जा रहे थे उनका चेहरा डाल सूखे पत्ते की तरह पीला पड़ गया था दुष्यंत ने थाम ली और अपनी एक अंगूठी निशानी के तौर पर उनकी अनामिका उंगली में पहना दी उनकी अनामिका उंगली में पहना दी शकुंतला के मायूस चेहरे पर जरा सिराना करने विदा कहना थोड़ा आसान हो गया था जैसा दुश्मन के चले जाने के बाद शकुंतला को अपनी जिंदगी किसी रेगिस्तान की तरह लगने लगी जिसमें धारिया ली थी नजर चार बहते झरने उसके दिन-रात बस दुष्यंत को याद करते हुए बीते जंगल में पंछियों के चाहने की आवाज अब उसके कानों को कर्कश लगती थी जब करती बारिश की बूंदों में कोई संगीत नहीं सुनाई देता था वह तो बस अपने दुष्यंत की याद में खोई रहती और अपने बाएं हाथ की उंगली में पहनी अंगूठी उनकी दी हुई निशानी थी उसको ताकती रहती अंगूठी के नगीने में उनका तलाश थी ऐसे ही ख्यालों में गुम शकुंतला की कुटिया में दुर्वासा मुनि पधारें उनके बार-बार आने पर भी शकुंतला अपने ख्यालों के रेशमी जाल से बाहर नहीं निकले को होश आ गया उन्होंने उसे श्राप दे दिया। जिस प्रेमी के ख्यालों में गुम हो कर तूने मेरी अवहेलना की है क्या वही तुझको भूल जाएगा तुझे पहचान नहीं पाएगा , मासूम शकुंतला के प्रति इतनी निर्दयता दुर्वासा मुनि कैसे दिखा सकते थे आखिर क्या कसूर था उसका प्रेम करना और उसमें डूब जाना क्या गुनाह है शकुंतला घबरा गई उनके माथे पर पसीने की बूंदें छल छल आई दुष्यंत को खो देने की बात सुनकर उनके दिल ने जैसे धड़कने से इंकार कर दिया सांसो की आवाज आई थमने लगी थी वह मुनि के चरणों में गिर पड़ा था जमीन पर रखकर माफी मांगने लगी अपने सामने भी उस मासूम लड़की को देखकर मुनि का दिल पसीज गया शकुंतला फिर उनकी पुत्री थी उन्होंने उसके सर पर हाथ रखा और बोले शांत हो जाओ शकुंतला तुम्हारा तो मैं समझ सकता हूं वापस नहीं लिया जा सकता जब तुम उसे उसकी कोई प्रेम की निशानी दिखाओ गी तो उसकी याददाश्त लौट आएगी और वह तुमको जरूर अपना लेगा शकुंतला की उतरी हुई सूरत में अचानक नूर आ गया उसकी आंखों की पुतलियों में अंगूठी में नगीना की चमक उतर आए फिर सो गई मैं गुम हो गई रे मीना चुनाव देवता मिलन की आस में दिन काटत शकुंतला को एक दिन एहसास हुआ कि उसके पास दुष्यंत की निशानी एक अंगूठी ही नहीं बल्कि कुछ और भी है दोनों के प्यार की निशानी बाकी उसके पास दुष्यंत की निशानी एक अंगूठी ही नहीं बल्कि कुछ और भी है दोनों के प्यार की निशानी उनके भीतर पलती एक नन्ही सी जान जंगल में हिरणों के पीछे कोलाचे भर्ती मोरों के संग नाचती शकुंतला के पांव भारी हो गए थे अब और विस्तृत से दुष्यंत के पास जाने के दिन का इंतजार करने लगी थी शकुंतला के इंतजार के दिन खत्म होने को थे वशीकरण तीर्थ यात्रा से लौट आए थे शकुंतला राजा दुष्यंत का बहाना उनके प्रेम विवाह और फिर अपने मां बनने की बात ऋषि को बताएं प्रतापी राजा को अपनी बेटी सपने में एक पिता को बेटी की विदाई के ख्याल से उनके मन को ना रो पड़ा था लेकिन यह दुनिया के दस्तूर नहीं थे उन्होंने अपने दोस्तों के साथ शकुंतला कर दिया था नदियों नालों को पार करती वीडियो नालों को पार करती हुई जब से दुष्यंत के पास पहुंच जाए मगर मोहब्बत के रास्ते इतने आसान कहां होते हैं शकुंतला चलते चलते थक गई तो रास्ते में चढ़ने के ठंडे पानी से चेहरे पर चीटी मारने लगी तभी उसकी उंगलियों से राजा दुष्यंत की हुई अंगूठी सड़क पर पानी में चली गई मैंने क्या कर दिया जो तू लापरवाही पर खींच गई उसने पानी में यहां-वहां अंगूठी में पानी में डुबकी लगाकर दिल में मोहब्बत की उम्मीद थी कि शकुंतला राजा दुष्यंत को देखता मिलन की कल्पना से गुलाबी हो गया राजा की आंखों में चारों पैरों में रहने वाला आज आश्रम में दिनों की याद दिलाएं रातों का स्मरण कराया जो दोनों ने तारों भरे आकाश के नीचे जाते हुए थे उसकी बातें सुनकर के माथे पर बल पड़ रहे थे अपने बेटे के सर पर हाथ रखा कुछ याद ही नहीं था अपनी आंखों से देखती रही मगर कोई फायदा नहीं हुआ ऋषि दुर्वासा का श्राप खाली नहीं गया था दुष्यंत शकुंतला को भूल चुके थे अंगूठी अंगूठी को टटोला मगर वह भी वह कहां थी वह तो जेल में तैरती मछली के पेट में जा चुकी थी शकुंतला हताश होकर गुदगुदाने लगी कहां जाऊंगा पिता के पास भी कैसे लड्डू कभी महल में शोरूम की बिजली कौंध रोशनी से सबकी आंखें चुनरी आ गई और अगले ही पल शकुंतला अपनी मां मेनका के पास शकुंतला को कश्यप ऋषि के आश्रम में छोड़ दिया जहां वह अपने उदासियों भरे दिन बिताने लगे पिता के प्यार और संरक्षण के बिना उनका बेटा भारत बड़ा होने लगा था यह वही भारत था जो आगे चलकर महान प्रतापी सम्राट बनाओ और उन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम भारत वर्ष हुआ दुनिया की हर मशहूर प्रेम कहानी का अंजाम एक ही था जुदाई फिर वो चाहे लैला मजनू फिर चाहे लैला मजनू हो शीरी फरहाद हूं यही रांझा तो क्या शकुंतला और दुष्यंत का प्रेम भी अधूरा रह जाएगा नहीं नहीं ऐसा ऐसा होना तो नहीं चाहिए हसनापुर चलते हैं ना एक दिन भर दरबार में एक मछुआरा है उसको मछली के पेट से कमउठी मिली थी और उसे राजा को बैठ कर के खुश करना चाहता था दुष्यंत ने जैसे ही उस अंगूठी को देखा उनको पिछला भूला हुआ सब याद आ गया कानून ऋषि का आश्रम व शकुंतला का मिलना उनका प्रेम शकुंतला का राज दरबार में आना और निराश होकर चले जाना वही अंगूठी तो थी जो उन्होंने निशानी के तौर पर शकुंतला को दी थी दुष्यंत को अपने भीतर एक छटपटाहट महसूस होने लगी यह क्या कर दिया मैंने आपको नहीं पहचाना कैसे बर्दाश्त किया होगा उसका कोमल मन कितना होगा दुष्यंत अपने आप को कोसने लगे या नहीं सही मैंने अपनी पत्नी और बेटे को अपमानित किया है उनको उनको दुख पहुंचाया है कहां खो दूं उनको कैसे पता लगाऊं क्यों कहां है अब तक सब कुछ भुला बैठे दुष्यंत को सब याद आते ही बेचैनियों ने घेर लिया वे लोक परलोक में घूम-घूम कर शकुंतला को खोजने लगे और 1 दिन की मदद करते हुए कश्यप ऋषि के आश्रम में दुष्यंत और शकुंतला मिल गई उनके मन में कोई सूट बढ़ाने का कोई कारण नहीं होती थी वो आंखे इंतजार में गहरा गई थी उसका दर्द महसूस कर रहे थे बीते हुए पल को अपनी आंखों से बहा देना चाहते थे उनके मिलन का साक्षी बना वक् ठहर गया थ ।

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